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Friday, December 31, 2021







 सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे,

पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते,

और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से,

की तुम्हे बयां कर सकूं वो शब्द नहीं मिलते।

 


वो जो बादलों में छुपा है कहीं,
सुनता नहीं मुझे चाहे बुलालू कितना भी।
क्यों रूठा है खुदा मेरा मुझसे,
पूछ तो लु मै भी उससे पर वो मेरी ओर देखे तो सही।


Monday, September 27, 2021

वो अधूरी ख्वाइश


 

वो अधूरी ख्वाइश मेरी जो पूरी न हो सकी,

वो ख्वाइश जिसको में पा ना सका,

एक ख्वाइश जिसको अपना बना ना सका,

जिसका औरा मेरी नजरों में ऐसा लब हुआ,

की अब कोई तलब नहीं, और

उसकी ऊंचाइयों के आगे मेरा कोई कद नहीं।

रही कुछ मजबूरियां मेरी भी जो कागज कलम से रिश्ता टूट गया,

और अपनी बात पे अड़े रहने का वो ओरा अब छूट गया।


Wednesday, May 5, 2021

बेटा नहीं तू बेटी है


 तू भी लेती सांस है,

पत्थर नहीं इंसान हैं।

कोमल मन और भोला सा चेहरा,

जज्बातों की अनोखी मिसाल है।

बेटा नही तू बेटी है,

ममता का आंचल ओढ़े रहती है।

आंगन की तुलसी को महकती,

हंसी ठिठोली कर सबको भाती।

फिर क्यों तू परेशान है,

मां-बाप के प्यार से अंजान है।

आती है मुस्किले जीवन में माना मैने,

पर तू हार क्यों मान लेती है।

खड़ा है तेरे पीछे तेरा परिवार,

तू ये जान ले ,

और निडर होकर मुसीबत का आ मिलकर 

शंघार करे।


Tuesday, May 4, 2021

आखरी खत जो तुझे लिखा है

 



आखरी खत जो तुझे लिखा है,

हां हां तेरे नाम लिखा है।

भूल ना जाना तू  मेरी महोब्बत को,

इसलिए तुझे ये खत लिखा है।

कुछ दर्द छिपे है इस दिल में ,

बया करूंगा जो धीरे–धीरे।

मोहब्बत हुई थी तुझसे, जज्बात जुड़े है इस दिल में।

शायद तू  समझेगी नहीं, शायद में समझा पाऊंगा नहीं।

पर तू खुश रहना , राजीखुशी रहना।

याद रखना बस तू इतना, की तू थी और तू ही रहेगी।

आखरी खत जो तुझे लिखा है,

हां हां तेरे नाम लिखा है।


Monday, May 3, 2021

बेवफा वो खुद हे

 






बेवफा वो खुद हे, और इल्जाम किसी और को देती है।
पहले नाम था जिन होठों पर मेरा, अब वो नाम किसी और का लेती है।
 कभी वादा किया था साथ निभाने का मुझसे,
आज उस वादे के साथ किसी और के साथ रहती है।

पहला प्यार

 



देखा था पहली दफा उन्हें उनकी ही गली में ।

ना जाने क्यों दिल दे दिया उनको मैंने उनकी ही गली में।

नजरों से जैसे वो कुछ बता रही थी,

थोड़ा ध्यान से देखा तो शायद वो शरमा रही थी।

हल्का सा डर था मेरे अंदर , जो मुझे सता रहा था,

उनसे बात ना  करू ये खुद को समझा रहा था।

पता चला की वो पगली प्यार से डरती थी,

दर्द था छुपा उसके अंदर जिसे कहने से डरती थी।

गुजरी थी वो भी उस दर्द से जिस दर्द से गुजरा था में कभी। 

में तो उभर गया पर शायद वो ना उभर पाए कभी।


 सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे, पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते, और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से, की तुम्हे बयां कर सकूं...