सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे,
पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते,
और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से,
की तुम्हे बयां कर सकूं वो शब्द नहीं मिलते।
वो अधूरी ख्वाइश मेरी जो पूरी न हो सकी,
वो ख्वाइश जिसको में पा ना सका,
एक ख्वाइश जिसको अपना बना ना सका,
जिसका औरा मेरी नजरों में ऐसा लब हुआ,
की अब कोई तलब नहीं, और
उसकी ऊंचाइयों के आगे मेरा कोई कद नहीं।
रही कुछ मजबूरियां मेरी भी जो कागज कलम से रिश्ता टूट गया,
और अपनी बात पे अड़े रहने का वो ओरा अब छूट गया।
तू भी लेती सांस है,
पत्थर नहीं इंसान हैं।
कोमल मन और भोला सा चेहरा,
जज्बातों की अनोखी मिसाल है।
ममता का आंचल ओढ़े रहती है।
आंगन की तुलसी को महकती,
हंसी ठिठोली कर सबको भाती।
फिर क्यों तू परेशान है,
मां-बाप के प्यार से अंजान है।
आती है मुस्किले जीवन में माना मैने,
पर तू हार क्यों मान लेती है।
खड़ा है तेरे पीछे तेरा परिवार,
तू ये जान ले ,
और निडर होकर मुसीबत का आ मिलकर
शंघार करे।
हां हां तेरे नाम लिखा है।
भूल ना जाना तू मेरी महोब्बत को,
इसलिए तुझे ये खत लिखा है।
कुछ दर्द छिपे है इस दिल में ,
बया करूंगा जो धीरे–धीरे।
मोहब्बत हुई थी तुझसे, जज्बात जुड़े है इस दिल में।
शायद तू समझेगी नहीं, शायद में समझा पाऊंगा नहीं।
पर तू खुश रहना , राजीखुशी रहना।
याद रखना बस तू इतना, की तू थी और तू ही रहेगी।
आखरी खत जो तुझे लिखा है,
हां हां तेरे नाम लिखा है।
देखा था पहली दफा उन्हें उनकी ही गली में ।
ना जाने क्यों दिल दे दिया उनको मैंने उनकी ही गली में।
नजरों से जैसे वो कुछ बता रही थी,
थोड़ा ध्यान से देखा तो शायद वो शरमा रही थी।
हल्का सा डर था मेरे अंदर , जो मुझे सता रहा था,
उनसे बात ना करू ये खुद को समझा रहा था।
पता चला की वो पगली प्यार से डरती थी,
दर्द था छुपा उसके अंदर जिसे कहने से डरती थी।
गुजरी थी वो भी उस दर्द से जिस दर्द से गुजरा था में कभी।
में तो उभर गया पर शायद वो ना उभर पाए कभी।
सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे, पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते, और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से, की तुम्हे बयां कर सकूं...