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Monday, September 27, 2021

वो अधूरी ख्वाइश


 

वो अधूरी ख्वाइश मेरी जो पूरी न हो सकी,

वो ख्वाइश जिसको में पा ना सका,

एक ख्वाइश जिसको अपना बना ना सका,

जिसका औरा मेरी नजरों में ऐसा लब हुआ,

की अब कोई तलब नहीं, और

उसकी ऊंचाइयों के आगे मेरा कोई कद नहीं।

रही कुछ मजबूरियां मेरी भी जो कागज कलम से रिश्ता टूट गया,

और अपनी बात पे अड़े रहने का वो ओरा अब छूट गया।


2 comments:

 सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे, पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते, और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से, की तुम्हे बयां कर सकूं...