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Wednesday, May 5, 2021

बेटा नहीं तू बेटी है


 तू भी लेती सांस है,

पत्थर नहीं इंसान हैं।

कोमल मन और भोला सा चेहरा,

जज्बातों की अनोखी मिसाल है।

बेटा नही तू बेटी है,

ममता का आंचल ओढ़े रहती है।

आंगन की तुलसी को महकती,

हंसी ठिठोली कर सबको भाती।

फिर क्यों तू परेशान है,

मां-बाप के प्यार से अंजान है।

आती है मुस्किले जीवन में माना मैने,

पर तू हार क्यों मान लेती है।

खड़ा है तेरे पीछे तेरा परिवार,

तू ये जान ले ,

और निडर होकर मुसीबत का आ मिलकर 

शंघार करे।


4 comments:

 सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे, पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते, और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से, की तुम्हे बयां कर सकूं...