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Friday, December 31, 2021







 सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे,

पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते,

और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से,

की तुम्हे बयां कर सकूं वो शब्द नहीं मिलते।

 


वो जो बादलों में छुपा है कहीं,
सुनता नहीं मुझे चाहे बुलालू कितना भी।
क्यों रूठा है खुदा मेरा मुझसे,
पूछ तो लु मै भी उससे पर वो मेरी ओर देखे तो सही।


 सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे, पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते, और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से, की तुम्हे बयां कर सकूं...