सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे,
पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते,
और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से,
की तुम्हे बयां कर सकूं वो शब्द नहीं मिलते।
सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे, पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते, और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से, की तुम्हे बयां कर सकूं...