वो अधूरी ख्वाइश मेरी जो पूरी न हो सकी,
वो ख्वाइश जिसको में पा ना सका,
एक ख्वाइश जिसको अपना बना ना सका,
जिसका औरा मेरी नजरों में ऐसा लब हुआ,
की अब कोई तलब नहीं, और
उसकी ऊंचाइयों के आगे मेरा कोई कद नहीं।
रही कुछ मजबूरियां मेरी भी जो कागज कलम से रिश्ता टूट गया,
और अपनी बात पे अड़े रहने का वो ओरा अब छूट गया।