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Sunday, May 2, 2021

पहली मुलाकात

 


याद हे मुझको वो तेरा और मेरा टकराना,

खुली हवा में भी अपनी सिसकीयों को छिपाना।

मेरा तुझे देखना और देखते ही जाना,

और तेरा मुझे देखते ही शर्माना।

ना सोचा था ये मुलाकात एक यादगार लम्हा बन जायेगी।

जिसे भूलने में शायद उम्र लग जायेगी।

माना तुझे आज कुछ याद नहीं,

पर वो लम्हा तू भी भूल जाए तेरी इतनी औकात नही।

2 comments:

 सोचता हु कभी दो अल्फाजों में लिख दू तुम्हे, पर तुमसे जुड़ पाए ऐसे अल्फाज नहीं बनते, और यूं ख़ामोश हुई हो तुम खुद से, की तुम्हे बयां कर सकूं...